Sunday, December 14, 2008

मेरा कमरा

मेरे कमरे में चारो ओर
खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ हैं,
हवा
सायें- सायें
इन में से गुज़रती है ।
परन्तु फिर भी
इसमें मेरा दम घुटता है ।

मेरे कमरे का दरवाज़
हमेशा खुला रहता है ।
चाँद, सूरज, तारे
सभी झांकते हैं इसमें,
परन्तु फिर भी
यह कल-कोठरी सा गमकता रहता है ।

मेरे कमरे की छत
मेरे कद से काफी ऊँची है ।
मैं चाह कर भी
उसे छू नहीं सकता,
परन्तु फिर भी मुझे ऐसा अहसास होता है,
जैसे मैं उसका बोझ लदे हुए हूँ ।

मेरे कमरे का फर्श
खूबसूरत संग-मर-मर का है,
एकदम ठोस और मजबूत
परन्तु फिर भी मुझे लगता है,
मेरे पाँवों तले ज़मीन नहीं है ।

13 comments:

दिगम्बर नासवा said...

मेरे कमरे की छत
मेरे कद से काफी ऊँची है ।
मैं चाह कर भी
उसे छू नहीं सकता,
परन्तु फिर भी मुझे ऐसा अहसास होता है,
जैसे मैं उसका बोझ लदे हुए हूँ ।

क्या बात है
बहुत बहुत बहुत ही अच्छी कविता है
अनोखे एहसास मैं डूबी

Unknown said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, मेरी शुभकामनायें…

रचना गौड़ ’भारती’ said...

कलम से जोड्कर भाव अपने
ये कौनसा समंदर बनाया है
बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
सुंदर रचना संसार बनाया है
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

एक सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
खूब लिखें,अच्छा लिखें

Manoj Kumar Soni said...

बहुत ... बहुत .. बहुत अच्छा लिखा है
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में स्वागत है
टेम्पलेट अच्छा चुना है. थोडा टूल्स लगाकर सजा ले .
कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और टिप्पणी दे
http://www.manojsoni.co.nr

Rahul Ranjan Rai said...

wo kamara sirf aapka nahi.............. hum sabka hai...........
apana apan sa lagta hai.

Rahul Ranjan Rai said...

wo kamara sirf aapka nahi.............. hum sabka hai...........
apana apan sa lagta hai.

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

हिन्दी ब्लाग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है ,टिप्पणी चिटठा पढ़ने के बाद करूंगी .मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं .................

मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है

Anonymous said...

achhi kavita hai. likhte rahie.meri shubhkamna.---
arun

Anonymous said...

खरोंचों को कुरेदने के लिए आप सभी साथियों का धन्‍यवाद. इस परिवार के इस नये सदस्‍य का इतना जोरदार स्‍वागत होगा इसकी आशा नहीं थी. पर एक जानकारी चाहूंगा कि आपको यह जानकारी कैसे मिली कि मैं इस परिवार में नये सदस्‍य के रूप में शामिल हो चुका हूं. क्‍योंकि मैं भी हर नये सदस्‍य का इसी गर्मजोशी के साथ स्‍वागत करना चाहता हूं. मेरी केवल एक ही रचना पर आप साथियों की टिप्‍पणी मिली है. बाकी कविताओं की ओर भी नजर डाल कर टिप्‍पणी लिखने का कष्‍ट करेंगे.

Prakash Badal said...

मेरे कमरे का दरवाज़
हमेशा खुला रहता है ।
चाँद, सूरज, तारे
सभी झांकते हैं इसमें,
परन्तु फिर भी
यह कल-कोठरी सा गमकता रहता है ।

वाह भाई साहब वाह!
क्या बढिया कविता है। खूब लिखें स्वागत है
संगमरमर का फर्श और पाँव के नीचे ज़मीन ही नहीं होने का अहसास आपके मुकम्मल कवि को दर्शाता है वाह!

प्रवीण त्रिवेदी said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, मेरी शुभकामनायें….....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें

amrendra "amar" said...

mai rehta hoon jaha ,
log kutiya kehte hai usko ,
mere liye to wo sara jahan hai ,
janam bhi wahi liya hai ,
mujhe merna bhi wahi hai ....

bahut accha likha hai aapne .....
bahut bahut badhai aapko .....