दिन पर दिन
इंच-दर-इंच
धंसता ही जा रहा हूं
गहरे और गहरे ।
इस सीलन भरे अंधकार में
लाल छोटी चींटियों सी यादें
नोचती
कचोटती
अतीत के हर उजले पलांश को
एक-एक कर
सामने ला पटकती हैं
उजले पलों की नुकीली
सुइयों-सी किरणें
अंधकार के अहसास को
और गहराती हैं
और
तार-तार कर जाती है
इस दिल को ।
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