Sunday, December 28, 2008

तेरी याद

वो जाड़ों की रिसती रात
सीली सी आगोश में
उफनते अहसास,
भूल जाने दो मुझे,
उनमें अब क्‍या रखा है.......
बस... तेरी याद को साथ सुला रखा है।

तेरे स्‍पर्श का मूक संवाद
तेरे जिस्‍म के हर हिस्‍से का स्‍वाद
वह नमकीन सा मीठा अहसास
आ रहा है याद
मेरे जिस्‍म के हर एक हिस्‍से को
जिसने उसे चखा है......
बस... तेरी याद को साथ सुला रखा है।

नये रिश्‍तों की तपिश से
ठिठुरती सेज
उबलते उच्‍छवासों की चादर ओढ़े
सिहरते, सिमटते जज्‍बातों को
सीने से लगा रखा है.....
बस... तेरी याद को साथ सुला रखा है.

3 comments:

Unknown said...

bahut achchi kavita!sundar or stik!

Anonymous said...

Bahut hi pyaar bhari romanchak rachna...aakhiri lines to bas lajabaab....

Sunita said...

Bahut bhavuk kavita hai :)