वो जाड़ों की रिसती रात
सीली सी आगोश में
उफनते अहसास,
भूल जाने दो मुझे,
उनमें अब क्या रखा है.......
बस... तेरी याद को साथ सुला रखा है।
तेरे स्पर्श का मूक संवाद
तेरे जिस्म के हर हिस्से का स्वाद
वह नमकीन सा मीठा अहसास
आ रहा है याद
मेरे जिस्म के हर एक हिस्से को
जिसने उसे चखा है......
बस... तेरी याद को साथ सुला रखा है।
नये रिश्तों की तपिश से
ठिठुरती सेज
उबलते उच्छवासों की चादर ओढ़े
सिहरते, सिमटते जज्बातों को
सीने से लगा रखा है.....
बस... तेरी याद को साथ सुला रखा है.
3 comments:
bahut achchi kavita!sundar or stik!
Bahut hi pyaar bhari romanchak rachna...aakhiri lines to bas lajabaab....
Bahut bhavuk kavita hai :)
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