Sunday, December 14, 2008

कैसे भूलूं

कैसे भूलूं
उस खामोश स्याह रात में
पायल का छनकना
कैसे भूलूं ।

बरसात की बूंदों का घुघंरू सा खनकना
और थाप पे उनकी दिलों का धडकना
कैसे भूलूं
कैसे भूलूं ......................

चांदनी रात में घर से वो छिप-छिप के निकलना
राह में हर अपने बेगाने से छिपना
और आहट के किसी कि
वो बाहों में सिमटना
कैसे भूलूं
कैसे भूलूं ......................

बढ़े हाथ को आंखों के कोनों से वो तकना
शर्माना, झिझकना, इनकार भी करना
फिर झट से उसे थाम
यूं पास खिसकना
कैसे भूलूं
कैसे भूलूं ......................

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