Sunday, December 14, 2008

कुछ भी तो नहीं

मुझे नहीं मालूम
'कुछ होना' क्या होता है
तुम्ही नें कहा था ना कि
'क्या था हमारे बीच'
- 'कुछ भी तो नहीं'

पर सोचता हूँ -

कुछ न होता तो मैं हू-ब-हू वही क्यों करता जो तुमने कहा था,
और तुम भी मुझे वह सब करने को किस अधिकार से कह पाती

कुछ न होता तो क्यों आज तुम मेरी परेशानी में यू परेशान होती
और क्यों मैं महसूसता यूं पहले सी ही सिहरन फिर से

कुछ न होता तो क्योंकर शामिल रहता तुम्हारी यादों मे मैं
और क्यों भुला न पाता मैं तुम्हें यूं सालों-साल।

कुछ था तभी तो मैंने मांगा था तुम्हें तुमसे ।
कुछ था तभी तो तुमने 'हां' कहा था - तत्क्षण
कुछ था तभी तो तुम्‍हारे जाने से जिन्‍दगी के सारे मकसद खत्‍म हो गए थे
कुछ था तभी तो आज भी उस खोने की टूटन बाकी है
कुछ था तभी तो वह अनकही तमन्नाएं कचोटती हैं तुम्हें अभी भी

न होता कुछ तो मेरा दिल
कम-से-कम आज तो मेरे इख्तयार में होता
और तुम भी यूं अपनों ही की तरह मुझे भूल जाने का
इससार फिर से न कर पाती उसी अधिकार के साथ

शायद 'कुछ भी तो नहीं' था
तभी मैं यू फिर-से विलग हो गया हूँ तुमसे
मात्र तुम्हारे कहने भर से ।

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