ज़रा- सी कानाफूसी
ज़रा सा शोर
ज़रा से ताने
और
ज़रा-ज़रा सी शिकन उनके माथों पर
ज़रा-ज़रा से वह शिकवे वह शिकायतें
वह सुगबुगाती-सी चिंगारियां
मसल सकते थे हम
अपने हाथों से
पर
तुमने
मैंने
खाक कर डाली थी हमनें
अपने रिश्ते की लपटें
कितने बे-वफा थे हम
इस धूप, पानी और हवा से
सबका
बराबर का सरोकार हैआप-हम
यही कहते-सुनते हैं कि
खुदा की यह नियामते तो
बराबर-बराबर ही बख्शी है उसने
हर किसी के लिए
पर देखों इन पर भी
सेंध लग गयी है
इधर देखो
धूप बरबस कोशिश कर रही है
भव्य अट्टालिकाओं से जूझ
सर्विस लेन की उस झोपड़ी तक पंहुचने की
पर सत्ता की छांव ने
बांध दिए हैं उसके पांव
और यहां देखों
नदी पर बंध गया है बांध
बंध गया है पानी
पैदा हो रही है उर्जा
इसलिए कि इन अट्टालिकाओं
के नियॉन बल्बों की जगमगाहट कम न हो
हवा के हाल भी
कुछ ऐसे ही बेहाल हैं
एयरकंडीशन के जबड़ो ने
जकड़ लिया है उसे
इन अट्टालिकाओं का इन-डोर इनवायरमेंट
इको फ्रेंडली बनाने के लिए
उगल रहा है आग
धूप हवा पानी
अब खुदा नहीं इन्सान
ही बक्श सकता है
मैं
मेरी सोच
और मेरी सोच की सीमाएं
कचोट गई थी मुझे
जब अपनी ही नजर में
मैं खुद हो गया था बौना
उस दिन
दोनो पैरों से पोलियोग्रस्त उस किशोर को
जब बड़े ही अपने-पन से
संवेदना जताते
मैंने कहा था
''काश... तुम्हारा एक पैर ठीक होता
जीने की तकलीफ
ज़रा कम हो जाती''
मेरी आंखों में झांकते हुए
मासूमियत से
उसने पूछा
''क्यों एक क्यों
दोनो पैर ठीक होते तो् -
मेरी सारी संवेदनाएं
वेदना बन
कोसने लगी मुझे
सपना दिखलाने में भी कंजूसी
और अन्तरमन में अपराधबोध लिए
उसके साथ खड़ी उसकी मां
फफक-फफक कर रोने लगी थी
अब
मेरा हर सपना
अपराधी लगता है मुझे
मां
क्यों जन्म से पहले
बेटी को मिटाती हो
खुदा की नियामत का
क्यों खून बहाती हो
मां,
तुम तो ममता की मूरत कहलाती हो
भगवान के बाद संसार में
तुम ही तो पूजी जाती हो
फिर क्यों नहीं तुम बाबा को समझाती हो
क्यों मेरे नन्हें अरमानों को तुम चाक किए जाती हो
क्यों दहेज के ठेकेदारों से
डरती हो, घबराती हो
दादी के उलाहने
क्यों दिल से लगाती हो
दादी भी है एक बेटी
तुम भी तो एक बेटी हो
क्यों जन्म से पहले
बेटी को मिटाती हो
क्यों जन्म से पहले
बेटी को मिटाती हो