खरोंचें/Abrasions
Saturday, April 19, 2014
फुहारें
हर मौसम बरसती
तेरी हंसी की फुहारें
तब भी भिगों जाती थी
जब मैं रस्मों-रिवाज़ों की बरसाती ओड़े
बचा करता था बारिशों से
पर अब
वही फुहारें
रिम-झिम करती
फिर-फिर भिगों जाती हैं
मेरी डायरी के कई पन्ने
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