Tuesday, December 8, 2009

बेताब सूरज

ढलती हुई शाम
सागर की गहराई में उतर जाने को बेताब सूरज
मेरी उंगलियों में उलझी तेरी उंगलिया

एक दूसरे के इतने करीब
कि जमाने की हर निगाह से कोसों दूर

पैरों में ठंडी रेत की मीठी चुभन को रौंदते
खामोशी को गुनगुनाते

मीलों चलते रहें
रात के ढलने तक

साथ चलोगी न ..................