ढलती हुई शाम
सागर की गहराई में उतर जाने को बेताब सूरज
मेरी उंगलियों में उलझी तेरी उंगलिया
एक दूसरे के इतने करीब
कि जमाने की हर निगाह से कोसों दूर
पैरों में ठंडी रेत की मीठी चुभन को रौंदते
खामोशी को गुनगुनाते
मीलों चलते रहें
रात के ढलने तक
साथ चलोगी न ..................