Saturday, June 14, 2008

नन्हीं बूंद

तेरे नम बालों से
मेरी हथेली पर टपकी वह
नन्हीं बूंद

तर-बतर कर गई थी मुझे
अन्तरतम तक
नहला गई थी मेरे
जिस्म के हर रूहानी और
रूह के हर जिस्मानी
हिस्से को

उसकी मदहोश महक
घोलती है रस
आज भी नस-नस में

वैसी महक
वैसा नशा
खोजते-खोजते ढल गई है मेरी उम्र
सभी उमंगें सभी उम्मीदें
बुढ़ा गयी हैं जैसे अब तो
उम्र नहीं
नाउम्मीदी
जर्जर कर गई है मेरी ख्वाहिशें
मेरे ख्वाब, और मेरी चाहतें

पर सदियों से
खुली मेरी हथेली को
अभी भी यकीन है कि वह
नन्हीं बूंद
खुद में छुपी रश्मियों की नोक से
मेरी तलहटी पर
तराशेगी
एक नयी भाग्य-रेखा
एक नये सिरे से